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शब्दों का महत्व

मित्रों,        आज हम चर्चा करेंगे शब्दों के महत्व की, बचपन में कुछ गलत बोलने की वजह से हमें हमारे माता-पिता की खूब सुननी होती थी ठीक उसकी प्रकार आज यदि हम कुछ गलत बोलते है तो हमें बहुत सी चीजे खोना होती है जैसे मित्रो को, जीवन साथी को कभी कभी तो रिश्ते टूट जाते है | शब्द संभाले बोलिए, शब्द के हाथ न पावं! एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव! Read more at: http://www.wfgyan.in/2016/05/blog-post_15.html   शब्द संभाले बोलिए, शब्द के हाथ न पावं | एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव ||   बचपन में इसे सबने खूब पढ़ा होगा परन्तु हमें ज्ञात नही रहता | कुछ बातें हमें हमारे गुरुजन द्वारा सिखाई जाती है की किस तरह से शब्दों को तोल-मोल कर बोलना चाहिए जिससे हमें किसी भी प्रकार की हानि ना हो | परन्तु वर्तमान युग में शब्दों के बेढंग इतने हो गये है कि हमने मान-सम्मान तक खो दिया है |      कितने ही विद्यार्थी अपने माता-पिता, गुरुजन या उनके अग्रज को पीठ पीछे गलत शब्दों से संबोधित करते है | जिसे वे अपना सुकून समझते है परन्तु वे नही जानते...
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भविष्य की कसोटी

मित्रो,        आज हम जानेंगे की भविष्य का निर्धारण कैसे करे | आज-कल हर माता-पिता को बच्चे के भविष्य की चिंता रहती है, समय के साथ जरुरी भी है चिंता परन्तु कुछ माता-पिता स्वयं के सपने को अपने बच्चे का सपना मान लेते है उदाहरण के लिए मेरा बच्चा बड़ा होकर डॉक्टर बनेगा, इंजिनियर बनेगा आदि | परन्तु बच्चो का भी सपना होता है कि वह बड़ा होकर एक्टर बने, कुछ का सपना होता है इसरो में साइंटिस्ट बने लेकिन बच्चे अपना सपना छोड़ दुसरो के सपने पुरे करने में लग जाता है | ⇒नई पीढ़ी अब केवल प्रतिशत के लिए भागती है कि मेरे प्रतिशत 90 आ गए तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में सिलेक्शन हो जाएगा, नही आए तो क्या होगा | ⇒कुछ बच्चे नीट परीक्षा की तैयारी हेतु कोटा जाते है | परीक्षा में चयन ना होने पर पुरे भारत में लगभग सेकड़ो छात्र गलत कदम उठाते है | कुछ विद्यार्थी अपनी क्षमताओं को ना देखकर अपने साथियों के साथ रहने की सोचते है और स्वयं के भविष्य का ना सोचकर विषय का चयन गलत ले लेते है या कभी वो ऐसे व्यक्ति से सुझाव लेते है जिन्हें अन्य विषयों की समझ नही है | बच्चो आप अपनी क्षमताओं को देखिये ...

वर्तमान पीढ़ी के संस्कार

मित्रो,          यह मेरा पहला ब्लॉग पोस्ट है, समय के अनुसार नई पीढ़ी अर्थात वर्तमान पीढ़ी को देखते हुए यह ब्लॉग मैं लिख रहा हूँ | "परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है", परन्तु परिवर्तन का क्रम क्या होना चाहिए यह भी निर्भर होना चाहिए , आज-कल के अंकुरित पौधे जिनकी वृद्धि नियमानुसार ना होकर अन्य साधनों से बड़ाई जा रही है अर्थात वर्तमान के बच्चे जो उनकी उम्र से कहीं अधिक सोचने लगते है | सोच भी वह जो उनकी उम्र से कहीं अधिक जिसके कारण एक पारिवारिक भिन्नता उत्पन्न होना | आज माता-पिता को उनके बच्चो के साथ उम्र के अनुसार व्यवहार करना चाहिए, जिसके कारण बच्चो में शिष्टाचार और संस्कार उत्पन्न हो | बच्चो को समझाना ,डांटना-फटकारना और यदि बात उनकी अच्छी तालीम की हो या उनके गलत व्यवहार की हो तो सिमित मारना भी उचित है क्योंकि आचार्य चाणक्य ने भी कहा है - "पुत्र से पांच वर्ष तक प्यार करना चाहिए। उसके बाद दस वर्ष तक अर्थात पंद्रह वर्ष की आयु तक उसे दंड आदि देते हुए अच्छे कार्य की और लगाना चाहिए। सोलहवां साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए। संसार में जो...