मित्रो, यह मेरा पहला ब्लॉग पोस्ट है, समय के अनुसार नई पीढ़ी अर्थात वर्तमान पीढ़ी को देखते हुए यह ब्लॉग मैं लिख रहा हूँ | "परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है", परन्तु परिवर्तन का क्रम क्या होना चाहिए यह भी निर्भर होना चाहिए , आज-कल के अंकुरित पौधे जिनकी वृद्धि नियमानुसार ना होकर अन्य साधनों से बड़ाई जा रही है अर्थात वर्तमान के बच्चे जो उनकी उम्र से कहीं अधिक सोचने लगते है | सोच भी वह जो उनकी उम्र से कहीं अधिक जिसके कारण एक पारिवारिक भिन्नता उत्पन्न होना | आज माता-पिता को उनके बच्चो के साथ उम्र के अनुसार व्यवहार करना चाहिए, जिसके कारण बच्चो में शिष्टाचार और संस्कार उत्पन्न हो | बच्चो को समझाना ,डांटना-फटकारना और यदि बात उनकी अच्छी तालीम की हो या उनके गलत व्यवहार की हो तो सिमित मारना भी उचित है क्योंकि आचार्य चाणक्य ने भी कहा है - "पुत्र से पांच वर्ष तक प्यार करना चाहिए। उसके बाद दस वर्ष तक अर्थात पंद्रह वर्ष की आयु तक उसे दंड आदि देते हुए अच्छे कार्य की और लगाना चाहिए। सोलहवां साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए। संसार में जो...